
चीन ने 14 मई को अपने सरकारी वेबसाइट ग्लोबल टाइम्स पर एक लिस्ट जारी की थी। इसमें भारत के उत्तर-पूर्वी राज्य अरुणाचल प्रदेश की 27 जगहों के नाम बदलने की बात कही थी। चीन की इस हरकत पर भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा था कि नाम बदलने की चीन की यह हरकत मूर्खतापूर्ण है, इससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा। अरुणाचल भारत का अटूट हिस्सा है। इसी बीच चीन भारत-चीन बॉर्डर पर बसे गांव थेम्बांग के लोगों ने कहा है कि चीन हमारे इलाकों पर दावा करता रहा है, लेकिन यह भारत की भूमि है। हम मातृभूमि की रक्षा के लिए जान दे सकते हैं। दरअसल, थेम्बांग गांव भारत की ओर से यूनेस्को के विश्व धरोहर स्थल की परमानेंट लिस्ट शामिल कराने का प्रयास है। इसके चलते थेम्बांग के लोग काफी उत्साहित है। भारत सरकार ने 2 अप्रैल 2018 को बताया था कि उत्तर-पूर्वी राज्यों में 6 स्मारकों और ऐतिहासिक स्थलों को विश्व धरोहर स्थल के तहत परमानेंट मार्क किया गया है। इनमें अरुणाचल का थेम्बांग गांव भी शामिल है। न की हरकत पर क्या कहते हैं गांव वाले अरुणाचल प्रदेश की दिरांग विधानसभा सीट से विधायक फुरपा त्सेरिंग ने एडवाइस कमेटी से उन तमाम मानदंडों पर काम करने को कहा, जिससे थेम्बांग को धरोहर स्थल का टैग जल्द हासिल हो सके। 56 साल के एन. ल्हामू (बदला नाम) ने बताया कि चीन हमारे राज्य में जगहों के नाम बदलने की बचकानी हरकत पहले भी करता रहा है, लेकिन इससे गांव वालों को फर्क नहीं पड़ता। हम भारतीय हैं और अरुणाचल प्रदेश भारत का अभिन्न और अविभाज्य अंग था, है और हमेशा रहेगा। कैसा है थेम्बांग 2014 में यूनेस्को ने जीरो घाटी के साथ थेम्बांग को विश्व धरोहर स्थल के लिए नॉमिनेट किया था। राज्य सरकार 2015 में इसे राज्य धरोहर स्थल घोषित कर किया। .2 एकड़ में फैला किलाबंद गांव मोनपा जनजाति के द्रिकिपा कबीले का घर है। गांव की 254 लोग रहते हैं। यह पश्चिम कामेंग जिले में पड़ता है। गांव से 32 किमी दूर चीन की आर्मी तैनात है। चीन ने जिन जगहों के नाम बदले उनमें पहाड़, नदियां-झील शामिल चीन के अरुणाचल को लेकर छेड़े प्रोपेगैंडा वॉर के तहत 27 जगहों के नाम बदले थे। इनमें 15 पहाड़, 5 कस्बे, 4 पहाड़ी दर्रे, 2 नदियां और एक झील शामिल हैं। इन जगहों के नाम मैंडेरिन (चीनी भाषा) में रखे गए हैं। 2023 में भारत ने G-20 शिखर सम्मेलन के समय एक बैठक अरुणाचल में की थी तब भी चीन ने इस क्षेत्र में कुछ नाम बदलने की घोषणा की थी। इससे पहले 2017 में दलाई लामा जब अरुणाचल आए थे तब भी नाम बदलने की हरकत की थी। 2024 में भी 20 जगहों के नाम बदले थे चीन ने अरुणाचल प्रदेश को अपना हिस्सा बताकर 30 जगहों के नाम बदले थे। चीन की सिविल अफेयर मिनिस्ट्री ने इसकी जानकारी दी थी। हांगकांग मीडिया हाउस साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट के मुताबिक, इनमें से 11 रिहायशी इलाके, 12 पर्वत, 4 नदियां, एक तालाब और एक पहाड़ों से निकलने वाला रास्ते थे। इन नामों को चीनी, तिब्बती और रोमन में जारी किया गया था। चीन ने अप्रैल 2023 में अपने नक्शे में अरुणाचल प्रदेश की 11 जगहों के नाम बदल दिए थे। इसके पहले 2021 में चीन ने 15 जगहों और 2017 में 6 जगहों के नाम बदले थे। नाम बदलने के पीछे चीन का क्या दावा है… चीन ने कभी अरुणाचल प्रदेश को भारत के राज्य के तौर पर मान्यता नहीं दी है। वो अरुणाचल को ‘दक्षिणी तिब्बत’ का हिस्सा बताता है। उसका आरोप है कि भारत ने उसके तिब्बती इलाके पर कब्जा करके उसे अरुणाचल प्रदेश बना दिया है। चीन अरुणाचल के इलाकों के नाम क्यों बदलता है इसका अंदाजा वहां के एक रिसर्चर के बयान से लगाया जा सकता है। 2015 में चाइनीज एकेडमी ऑफ सोशल साइंस के रिसर्चर झांग योंगपान ने ग्लोबल टाइम्स को कहा था, ‘जिन जगहों के नाम बदले गए हैं वो कई सौ सालों से हैं। चीन का इन जगहों का नाम बदलना बिल्कुल जायज है। पुराने समय में जांगनान ( चीन में अरुणाचल को दिया नाम) के इलाकों के नाम केंद्रीय या स्थानीय सरकारें ही रखती थीं। इसके अलावा इलाके के जातीय समुदाय जैसे तिब्बती, लाहोबा, मोंबा भी अपने अनुसार जगहों के नाम बदलते रहते थे। जब जैंगनेम पर भारत ने गैर कानूनी तरीके से कब्जा जमाया तो वहां की सरकार ने गैर कानूनी तरीकों से जगहों के नाम भी बदले। झांग ने ये भी कहा था कि अरुणाचल के इलाकों के नाम बदलने का हक केवल चीन को होना चाहिए। क्या सच में नाम बदल जाएंगे? इसका जवाब है- नहीं। दरअसल, इसके लिए तय रूल्स और प्रॉसेस है। अगर किसी देश को, किसी जगह का नाम बदलना है तो उसे UN ग्लोबल जियोग्राफिक इन्फॉर्मेशन मैनेजमेंट को पहले से जानकारी देनी होती है। इसके बाद, UN के जियोग्राफिक एक्सपर्ट उस इलाके का दौरा करते हैं। इस दौरान प्रस्तावित नाम की जांच की जाती है। स्थानीय लोगों से बातचीत की जाती है। तथ्य सही होने पर नाम बदलने को मंजूरी दी जाती है और इसे रिकॉर्ड में शामिल किया जाता है। अरुणाचल प्रदेश को चीन इतना अहम क्यों मानता है? अरुणाचल प्रदेश पूर्वोत्तर का सबसे बड़ा राज्य है। नॉर्थ और नॉर्थ वेस्ट में तिब्बत, वेस्ट में भूटान और ईस्ट में म्यांमार के साथ यह अपनी सीमा साझा करता है। अरुणाचल प्रदेश को पूर्वोत्तर का सुरक्षा कवच कहा जाता है। चीन का दावा तो पूरे अरुणाचल पर है, लेकिन उसकी जान तवांग जिले पर अटकी है। तवांग अरुणाचल के नॉर्थ-वेस्ट में हैं, जहां पर भूटान और तिब्बत की सीमाएं हैं। ………………… चीन-भारत से जुड़ी ये खबर भी पढ़ें… भारत ने लद्दाख में चीन की काउंटी का विरोध जताया: कहा- इसका कुछ हिस्सा हमारे क्षेत्र में, चाइना होतान में दो नई काउंटी बना रहा भारत ने चीन की ओर से लद्दाख के कुछ इलाकों को अपना बताने पर जनवरी में विरोध दर्ज कराया था। विदेश मंत्रालय ने कहा था कि चीन अपने होतान प्रांत में दो नए काउंटी (जिला) बनाने की कोशिश कर रहा है। इनका कुछ हिस्सा लद्दाख में पड़ता है। चीन ने होतान प्रांत में दो नई काउंटी हेआन और हेकांग बनाने का ऐलान किया था। पूरी खबर पढ़ें…
चीन ने 14 मई को अपने सरकारी वेबसाइट ग्लोबल टाइम्स पर एक लिस्ट जारी की थी। इसमें भारत के उत्तर-पूर्वी राज्य अरुणाचल प्रदेश की 27 जगहों के नाम बदलने की बात कही थी। चीन की इस हरकत पर भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा था कि नाम बदलने की चीन की यह हरकत मूर्खतापूर्ण है, इससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा। अरुणाचल भारत का अटूट हिस्सा है। इसी बीच चीन भारत-चीन बॉर्डर पर बसे गांव थेम्बांग के लोगों ने कहा है कि चीन हमारे इलाकों पर दावा करता रहा है, लेकिन यह भारत की भूमि है। हम मातृभूमि की रक्षा के लिए जान दे सकते हैं। दरअसल, थेम्बांग गांव भारत की ओर से यूनेस्को के विश्व धरोहर स्थल की परमानेंट लिस्ट शामिल कराने का प्रयास है। इसके चलते थेम्बांग के लोग काफी उत्साहित है। भारत सरकार ने 2 अप्रैल 2018 को बताया था कि उत्तर-पूर्वी राज्यों में 6 स्मारकों और ऐतिहासिक स्थलों को विश्व धरोहर स्थल के तहत परमानेंट मार्क किया गया है। इनमें अरुणाचल का थेम्बांग गांव भी शामिल है। न की हरकत पर क्या कहते हैं गांव वाले अरुणाचल प्रदेश की दिरांग विधानसभा सीट से विधायक फुरपा त्सेरिंग ने एडवाइस कमेटी से उन तमाम मानदंडों पर काम करने को कहा, जिससे थेम्बांग को धरोहर स्थल का टैग जल्द हासिल हो सके। 56 साल के एन. ल्हामू (बदला नाम) ने बताया कि चीन हमारे राज्य में जगहों के नाम बदलने की बचकानी हरकत पहले भी करता रहा है, लेकिन इससे गांव वालों को फर्क नहीं पड़ता। हम भारतीय हैं और अरुणाचल प्रदेश भारत का अभिन्न और अविभाज्य अंग था, है और हमेशा रहेगा। कैसा है थेम्बांग 2014 में यूनेस्को ने जीरो घाटी के साथ थेम्बांग को विश्व धरोहर स्थल के लिए नॉमिनेट किया था। राज्य सरकार 2015 में इसे राज्य धरोहर स्थल घोषित कर किया। .2 एकड़ में फैला किलाबंद गांव मोनपा जनजाति के द्रिकिपा कबीले का घर है। गांव की 254 लोग रहते हैं। यह पश्चिम कामेंग जिले में पड़ता है। गांव से 32 किमी दूर चीन की आर्मी तैनात है। चीन ने जिन जगहों के नाम बदले उनमें पहाड़, नदियां-झील शामिल चीन के अरुणाचल को लेकर छेड़े प्रोपेगैंडा वॉर के तहत 27 जगहों के नाम बदले थे। इनमें 15 पहाड़, 5 कस्बे, 4 पहाड़ी दर्रे, 2 नदियां और एक झील शामिल हैं। इन जगहों के नाम मैंडेरिन (चीनी भाषा) में रखे गए हैं। 2023 में भारत ने G-20 शिखर सम्मेलन के समय एक बैठक अरुणाचल में की थी तब भी चीन ने इस क्षेत्र में कुछ नाम बदलने की घोषणा की थी। इससे पहले 2017 में दलाई लामा जब अरुणाचल आए थे तब भी नाम बदलने की हरकत की थी। 2024 में भी 20 जगहों के नाम बदले थे चीन ने अरुणाचल प्रदेश को अपना हिस्सा बताकर 30 जगहों के नाम बदले थे। चीन की सिविल अफेयर मिनिस्ट्री ने इसकी जानकारी दी थी। हांगकांग मीडिया हाउस साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट के मुताबिक, इनमें से 11 रिहायशी इलाके, 12 पर्वत, 4 नदियां, एक तालाब और एक पहाड़ों से निकलने वाला रास्ते थे। इन नामों को चीनी, तिब्बती और रोमन में जारी किया गया था। चीन ने अप्रैल 2023 में अपने नक्शे में अरुणाचल प्रदेश की 11 जगहों के नाम बदल दिए थे। इसके पहले 2021 में चीन ने 15 जगहों और 2017 में 6 जगहों के नाम बदले थे। नाम बदलने के पीछे चीन का क्या दावा है… चीन ने कभी अरुणाचल प्रदेश को भारत के राज्य के तौर पर मान्यता नहीं दी है। वो अरुणाचल को ‘दक्षिणी तिब्बत’ का हिस्सा बताता है। उसका आरोप है कि भारत ने उसके तिब्बती इलाके पर कब्जा करके उसे अरुणाचल प्रदेश बना दिया है। चीन अरुणाचल के इलाकों के नाम क्यों बदलता है इसका अंदाजा वहां के एक रिसर्चर के बयान से लगाया जा सकता है। 2015 में चाइनीज एकेडमी ऑफ सोशल साइंस के रिसर्चर झांग योंगपान ने ग्लोबल टाइम्स को कहा था, ‘जिन जगहों के नाम बदले गए हैं वो कई सौ सालों से हैं। चीन का इन जगहों का नाम बदलना बिल्कुल जायज है। पुराने समय में जांगनान ( चीन में अरुणाचल को दिया नाम) के इलाकों के नाम केंद्रीय या स्थानीय सरकारें ही रखती थीं। इसके अलावा इलाके के जातीय समुदाय जैसे तिब्बती, लाहोबा, मोंबा भी अपने अनुसार जगहों के नाम बदलते रहते थे। जब जैंगनेम पर भारत ने गैर कानूनी तरीके से कब्जा जमाया तो वहां की सरकार ने गैर कानूनी तरीकों से जगहों के नाम भी बदले। झांग ने ये भी कहा था कि अरुणाचल के इलाकों के नाम बदलने का हक केवल चीन को होना चाहिए। क्या सच में नाम बदल जाएंगे? इसका जवाब है- नहीं। दरअसल, इसके लिए तय रूल्स और प्रॉसेस है। अगर किसी देश को, किसी जगह का नाम बदलना है तो उसे UN ग्लोबल जियोग्राफिक इन्फॉर्मेशन मैनेजमेंट को पहले से जानकारी देनी होती है। इसके बाद, UN के जियोग्राफिक एक्सपर्ट उस इलाके का दौरा करते हैं। इस दौरान प्रस्तावित नाम की जांच की जाती है। स्थानीय लोगों से बातचीत की जाती है। तथ्य सही होने पर नाम बदलने को मंजूरी दी जाती है और इसे रिकॉर्ड में शामिल किया जाता है। अरुणाचल प्रदेश को चीन इतना अहम क्यों मानता है? अरुणाचल प्रदेश पूर्वोत्तर का सबसे बड़ा राज्य है। नॉर्थ और नॉर्थ वेस्ट में तिब्बत, वेस्ट में भूटान और ईस्ट में म्यांमार के साथ यह अपनी सीमा साझा करता है। अरुणाचल प्रदेश को पूर्वोत्तर का सुरक्षा कवच कहा जाता है। चीन का दावा तो पूरे अरुणाचल पर है, लेकिन उसकी जान तवांग जिले पर अटकी है। तवांग अरुणाचल के नॉर्थ-वेस्ट में हैं, जहां पर भूटान और तिब्बत की सीमाएं हैं। ………………… चीन-भारत से जुड़ी ये खबर भी पढ़ें… भारत ने लद्दाख में चीन की काउंटी का विरोध जताया: कहा- इसका कुछ हिस्सा हमारे क्षेत्र में, चाइना होतान में दो नई काउंटी बना रहा भारत ने चीन की ओर से लद्दाख के कुछ इलाकों को अपना बताने पर जनवरी में विरोध दर्ज कराया था। विदेश मंत्रालय ने कहा था कि चीन अपने होतान प्रांत में दो नए काउंटी (जिला) बनाने की कोशिश कर रहा है। इनका कुछ हिस्सा लद्दाख में पड़ता है। चीन ने होतान प्रांत में दो नई काउंटी हेआन और हेकांग बनाने का ऐलान किया था। पूरी खबर पढ़ें…