
गुजरात के राजकोट में 13 वर्षीय लड़की 33 सप्ताह की गर्भवती है। खेलने-कूदने की उम्र की एक बच्ची को अस्पतालों, पुलिस थानों और अदालतों के चक्कर लगाने पड़ रहे हैं। बच्ची के परिवार ने गर्भपात के लिए गुजरात हाईकोर्ट में याचिका लगाई थी। कोर्ट ने सोमवार को गर्भपात की मंजूरी दी है। कोर्ट ने चीफ मेडिकल ऑफिसर की देखरेख में नाबालिग का गर्भपात कराने का निर्देश दिया है। यह देश का पहला मामला है, जब कोर्ट ने गर्भावस्था के सबसे ज्यादा हफ्ते के गर्भपात की अनुमति दी है। इससे पहले 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने 32 सप्ताह के भ्रूण के गर्भपात की अनुमति दी थी। बच्ची की मां ने की थी दूसरी शादी
महाराष्ट्र की एक महिला का 2022 में तलाक हो गया था। महिला के दो बच्चे भी थे। इसके बाद महिला ने राजकोट में रहने वाले एक युवक से दूसरी शादी कर ली थी। इसी दौरान महिला बेटी के साथ 27 अप्रैल 2025 को महाराष्ट्र में अपनी बहन के घर गई थी। यहां उसकी 13 साल बेटी ने पेट दर्द की शिकायत की तो उसे सरकारी अस्पताल ले जाया गया। मेडिकल जांच में पता चला कि बच्ची 20 से 22 महीने की गर्भवती है। इसके बाद मामला पुलिस तक पहुंचा और महिला पुलिस की काउंसलर ने बच्ची को विश्वास में लेकर उससे पूरी सच्चाई जान ली। बच्ची ने उन्हें बताया कि राजकोट में उसके चचेरे भाई साहिल (बदला हुआ नाम) और उसके दोस्त ने कई बार उससे दुष्कर्म किया था। बच्ची की मां ने आरोपी रहने वाले साहिल और उसके दोस्त के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई। महाराष्ट्र से राजकोट ट्रांसफर हुआ केस
दुष्कर्म का मामला महाराष्ट्र में दर्ज हुआ था, जिसे बाद में राजकोट स्थानांतरित कर दिया गया। राजकोट बी डिवीजन पुलिस ने 29 अप्रैल को मामला दर्ज कर आगे की जांच शुरू की। आरोपियों की गिरफ्तारी के बाद पता चला कि दुष्कर्म के दोनों आरोपी भी नाबालिग हैं। कोर्ट के आदेश पर दोनों नाबालिग सुधार गृह में हैं। पुलिस ने दोनों नाबालिग आरोपियों और पीड़ित के पेट में पल रहे भ्रूण के डीएनए जांच के लिए भेज दिए हैं। निचली अदालत ने याचिका खारिज की
रेप का मामला दर्ज होने के बाद बच्ची और उसके परिवार के लिए सबसे बड़ी चिंता उसे पेट में पल रहे भ्रूण को लेकर थी। बीती 2 मई को नाबालिग आरोपियों की गिरफ्तारी हुई। इसके अगले दिन यानी कि 3 मई को बच्ची के परिवार ने राजकोट की निचली अदालत में गर्भपात के लिए याचिका दायर की। जब निचली अदालत ने मेडिकल रिपोर्ट मांगी तो पता चला कि नाबालिग को अब 31 सप्ताह और 6 दिन गर्भ था। कोर्ट 6 मई को गर्भपात की अनुमति मांगने वाली याचिका खारिज कर दी। पीड़ित परिवार हाईकोर्ट पहुंचा
इसके अगले दिन पीड़ित परिवार ने हाईकोर्ट से गुहार लगाई। मामले की गंभीरता को देखते हुए हाईकोर्ट ने राजकोट के पंडित दीन दयाल उपाध्याय अस्पताल को तुरंत नाबालिग की मेडिकल जांच कराने का आदेश दिया। दो दिनों बाद अस्पताल ने कोर्ट को मेडिकल रिपोर्ट सौंपते हुए कहा कि बच्ची के पेट में भ्रूण 1.99 किलोग्राम का है। बच्ची एनीमिया से भी पीड़ित है इसलिए गर्भपात के दौरान आईसीयू और विशेषज्ञ डॉक्टरों की आवश्यकता होगी। आखिरकार हाईकोर्ट ने अबॉर्शन की अनुमति दे दी। अदालत ने आदेश दिया कि आईसीयू, बल्ड और विशेषज्ञों की टीम की व्यवस्था कर एक हफ्ते के अंदर अबॉर्शन करवा दिया जाए। बच्ची का अबॉर्शन राजकोट सिविल अस्पताल में होगा। राजकोट की सिविल सुपरिंटेंडेंट ने कहा-मामला गोपनीय है
इस बारे में राजकोट की सिविल हॉस्पिटल की सुपरिंटेंडेंट डॉ. मोनाली मनकाडिया ने दिव्य भास्कर से फोन पर बातचीत में कहा- यह पूरी तरह से गोपनीय मामला है और मैं इस पर किसी भी तरह की चर्चा नहीं करूंगी। उन्होंने गर्भपात की प्रक्रिया और बच्चे के जीवित रहने की संभावनाओं के बारे में किसी भी सवाल का जवाब देने से साफ इनकार कर दिया है। गर्भपात कानून क्या कहता है?
मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (एमटीपी) अधिनियम के तहत, किसी भी विवाहित महिला, बलात्कार पीड़िता, विकलांग महिला और नाबालिग लड़की को 24 सप्ताह तक के गर्भपात की अनुमति है। यदि गर्भ 24 सप्ताह से अधिक का हो तो गर्भपात के लिए मेडिकल बोर्ड की सलाह पर न्यायालय से अनुमति लेनी होती है। वर्ष 2020 में एमटीपी एक्ट में बदलाव किया गया था।
गुजरात के राजकोट में 13 वर्षीय लड़की 33 सप्ताह की गर्भवती है। खेलने-कूदने की उम्र की एक बच्ची को अस्पतालों, पुलिस थानों और अदालतों के चक्कर लगाने पड़ रहे हैं। बच्ची के परिवार ने गर्भपात के लिए गुजरात हाईकोर्ट में याचिका लगाई थी। कोर्ट ने सोमवार को गर्भपात की मंजूरी दी है। कोर्ट ने चीफ मेडिकल ऑफिसर की देखरेख में नाबालिग का गर्भपात कराने का निर्देश दिया है। यह देश का पहला मामला है, जब कोर्ट ने गर्भावस्था के सबसे ज्यादा हफ्ते के गर्भपात की अनुमति दी है। इससे पहले 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने 32 सप्ताह के भ्रूण के गर्भपात की अनुमति दी थी। बच्ची की मां ने की थी दूसरी शादी
महाराष्ट्र की एक महिला का 2022 में तलाक हो गया था। महिला के दो बच्चे भी थे। इसके बाद महिला ने राजकोट में रहने वाले एक युवक से दूसरी शादी कर ली थी। इसी दौरान महिला बेटी के साथ 27 अप्रैल 2025 को महाराष्ट्र में अपनी बहन के घर गई थी। यहां उसकी 13 साल बेटी ने पेट दर्द की शिकायत की तो उसे सरकारी अस्पताल ले जाया गया। मेडिकल जांच में पता चला कि बच्ची 20 से 22 महीने की गर्भवती है। इसके बाद मामला पुलिस तक पहुंचा और महिला पुलिस की काउंसलर ने बच्ची को विश्वास में लेकर उससे पूरी सच्चाई जान ली। बच्ची ने उन्हें बताया कि राजकोट में उसके चचेरे भाई साहिल (बदला हुआ नाम) और उसके दोस्त ने कई बार उससे दुष्कर्म किया था। बच्ची की मां ने आरोपी रहने वाले साहिल और उसके दोस्त के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई। महाराष्ट्र से राजकोट ट्रांसफर हुआ केस
दुष्कर्म का मामला महाराष्ट्र में दर्ज हुआ था, जिसे बाद में राजकोट स्थानांतरित कर दिया गया। राजकोट बी डिवीजन पुलिस ने 29 अप्रैल को मामला दर्ज कर आगे की जांच शुरू की। आरोपियों की गिरफ्तारी के बाद पता चला कि दुष्कर्म के दोनों आरोपी भी नाबालिग हैं। कोर्ट के आदेश पर दोनों नाबालिग सुधार गृह में हैं। पुलिस ने दोनों नाबालिग आरोपियों और पीड़ित के पेट में पल रहे भ्रूण के डीएनए जांच के लिए भेज दिए हैं। निचली अदालत ने याचिका खारिज की
रेप का मामला दर्ज होने के बाद बच्ची और उसके परिवार के लिए सबसे बड़ी चिंता उसे पेट में पल रहे भ्रूण को लेकर थी। बीती 2 मई को नाबालिग आरोपियों की गिरफ्तारी हुई। इसके अगले दिन यानी कि 3 मई को बच्ची के परिवार ने राजकोट की निचली अदालत में गर्भपात के लिए याचिका दायर की। जब निचली अदालत ने मेडिकल रिपोर्ट मांगी तो पता चला कि नाबालिग को अब 31 सप्ताह और 6 दिन गर्भ था। कोर्ट 6 मई को गर्भपात की अनुमति मांगने वाली याचिका खारिज कर दी। पीड़ित परिवार हाईकोर्ट पहुंचा
इसके अगले दिन पीड़ित परिवार ने हाईकोर्ट से गुहार लगाई। मामले की गंभीरता को देखते हुए हाईकोर्ट ने राजकोट के पंडित दीन दयाल उपाध्याय अस्पताल को तुरंत नाबालिग की मेडिकल जांच कराने का आदेश दिया। दो दिनों बाद अस्पताल ने कोर्ट को मेडिकल रिपोर्ट सौंपते हुए कहा कि बच्ची के पेट में भ्रूण 1.99 किलोग्राम का है। बच्ची एनीमिया से भी पीड़ित है इसलिए गर्भपात के दौरान आईसीयू और विशेषज्ञ डॉक्टरों की आवश्यकता होगी। आखिरकार हाईकोर्ट ने अबॉर्शन की अनुमति दे दी। अदालत ने आदेश दिया कि आईसीयू, बल्ड और विशेषज्ञों की टीम की व्यवस्था कर एक हफ्ते के अंदर अबॉर्शन करवा दिया जाए। बच्ची का अबॉर्शन राजकोट सिविल अस्पताल में होगा। राजकोट की सिविल सुपरिंटेंडेंट ने कहा-मामला गोपनीय है
इस बारे में राजकोट की सिविल हॉस्पिटल की सुपरिंटेंडेंट डॉ. मोनाली मनकाडिया ने दिव्य भास्कर से फोन पर बातचीत में कहा- यह पूरी तरह से गोपनीय मामला है और मैं इस पर किसी भी तरह की चर्चा नहीं करूंगी। उन्होंने गर्भपात की प्रक्रिया और बच्चे के जीवित रहने की संभावनाओं के बारे में किसी भी सवाल का जवाब देने से साफ इनकार कर दिया है। गर्भपात कानून क्या कहता है?
मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (एमटीपी) अधिनियम के तहत, किसी भी विवाहित महिला, बलात्कार पीड़िता, विकलांग महिला और नाबालिग लड़की को 24 सप्ताह तक के गर्भपात की अनुमति है। यदि गर्भ 24 सप्ताह से अधिक का हो तो गर्भपात के लिए मेडिकल बोर्ड की सलाह पर न्यायालय से अनुमति लेनी होती है। वर्ष 2020 में एमटीपी एक्ट में बदलाव किया गया था।